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श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. ७
॥ ढाल॥सुण बहेनी पियुमो परदेशी ॥ए देशी ॥ ॥ध्यानक्रिया मनमां श्राणीजे, धर्म शुकल ध्यायीजे रे॥ आर्त रौजना कारण किरिया, पंचवीशने वारीजे रे ॥ ध्यानक्रिया जजो निशिदिन प्राणी ॥१॥ए आंकणी॥कंचनकांति परमेष्ठिरूपे, लोकालोक प्रमाण रे॥सर्व शांतिकर जाल ठेकाणे, ध्यावो प्रणव गुणखाण रे ॥ ध्या० ॥२॥ तेर क्रियागण तेर काठिया तजी, करणसित्तरी जीए रे ॥ योग अमदिहि सम्यक्त्वकिरिया, श्रातम सुखकर जजीए रे॥ध्या॥३॥ पहेली चल दिहि ज्ञानाधारे, रत्नत्रयाधारे चार रे॥श्रड कर्म
ये उपशमे विचित्रा, उघदृष्टि बहु प्रकार रे॥ध्या ॥४॥विष गरल हीनादिक वारो, तहेतु अमृत धारो रे॥प्रीति नक्ति वचन असंगे, शुज परिणति सुधारो रे॥ध्या॥५॥ अंतरतत्त्व विषय प्रतीते, ए ज्ञानकिरिया साची रे॥अक्रियावादी कृष्णपदी, शुक्ल पदी किरियावाची रे॥ध्या॥६॥अशुल ध्यानगण त्रेसठ वारी, ध्यान शतक मन धारी रे॥हरिवाहन तीर्थकर हुर्ड, सौजाग्यलक्ष्मी दिल धारी रे ॥ध्या ॥७॥इति क्रियापदपूजा त्रयोदशी ॥ १३ ॥
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