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७४ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. चरम त्रिनाग विशेषथी रे, अवगाहन घन कीधरे ॥ शिव ॥६॥ सिफशिलानी उपरे रे, ज्योतिमां ज्योति निवास रे ॥ शिव० ॥ हस्तिपाल परे सेवतां रे, सौजाग्यलक्ष्मी प्रकाश रे ॥ शिव० ॥७॥ इति श्रीसिझपदपूजा द्वितीया ॥२॥ ॥ अथ तृतीय प्रवचनपदपूजा प्रारंजः॥
॥ दोहा ॥ ॥ जावामय उषधसमी, प्रवचन अमृतवृष्टि॥त्रिजुवनजीवने सुखकरी, जय जय प्रवचनदृष्टि ॥१॥ ॥ढाल॥में कीनो नहीं प्रजु बिन उरशुं राग॥ए देशी॥ ॥प्रवचनपदने सेवीए रे,जैन दर्शन संघरूप॥श्ररिहा पण नमे तीर्थने रे, समवसरणना नूप॥में कीनो सहि प्रवचनपदशुराग ॥प्रवचनपदशुंराग, में कीनो सहि ॥॥॥ए आंकणी॥प्रवचन नक्तिरागथी रे, थया संजव जिनराय॥सघलां धर्मकारज तणां रे, एहमां पुण्य समाय॥ में॥२॥पापक्षेत्र सात वारीए रे, पुण्यक्षेत्र सात गम॥सवा लाख जिनमंदिरां रे, जिनमंडित पुर ग्राम ॥में॥३॥सवा कोडि जिनबिंबने रे, जरावे संप्रति राय ॥ ज्ञाननंमार एकवीश कस्या रे,
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