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________________ श्री विजयलक्ष्मी सूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. १७३ ॥ अथ द्वितीय सि६पदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ गुण अनंत निर्मल थया, सहज स्वरूप उजास ॥ अष्ट कर्ममल दय करी, जये सिद्ध नमो तास ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ गुणरसीया ॥ ए देशी ॥ ॥ श्री सिद्धपद आराधीए रे, कय कीधां यम कर्म रे ॥ शिव वसीया ॥ अरिहंते पण मानीया रे, सादि अनंत स्थिति शर्म रे ॥ शिव० ॥ १ ॥ गुण एकत्रीश परमातमा रे, तुरियदशा श्राखाद रे ॥ शिव० ॥ एवंनूतनये सिद्ध थया रे, गुणगणनो श्रह्लाद रे ॥ शिव० ॥ २ ॥ सुरगण सुख त्रिहुं कालनां रे, अनंत गुणां ते कीध रे ॥ शिव० ॥ अनंत वर्गे वर्गित कस्या रे, तोपण सुख समिध रे ॥ शिव० ॥ ३ ॥ बंध उदय उदीरणा रे, सत्ता कर्म अजाव रे ॥ शिव० ॥ ऊर्ध्व गति करे सिद्धजी रे, पूर्व प्रयोग सद्भाव रे ॥ शिव० ॥ ४ ॥ गति पारिणामिक नावथी रे, बंधन बेदन योग रे ॥ शिव० ॥ असंगक्रिया बले निर्मलो रे, सिद्धगतिनो उद्योग रे ॥ शिव० ॥ ५ ॥ पएसंतर फरसता रे, एक समयमां सिद्ध रे ॥ शिव० ॥ वि० १८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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