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________________ २७० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. तरंग जरायो॥ तीरथगुण मक्ताफल माला. संघने कंठे उवायो रे ॥ वि० ॥२॥ शेठ हेमालाइ हुकम लहीने, पालीताणा शिर गयो । मोतीचंद मलुकचंदराज्ये ॥ संघ सकल हरखायो रे ॥ वि० ॥३॥ तपगल सिंह सूरीसर केरा, सत्य विजय सत्य पायो॥ कपूर विजय गुरु खिमा विजय तस, जश विजयो मुनिरायो रे ॥ वि०॥४॥ श्रीशुनविजय सुगुरु सुपसाये, श्रुतचिंतामणि पायो ॥ विजयदेवेंज सूरीश्वर राज्ये, पूजा अधिकार रचायो रे ॥ वि०॥५॥पूजा नवाणुं प्रकारी रचावो, गावो ए गिरिरायो ॥ विधियोगे फल पूरण प्रगटे, तव दम्वाद हगयो रे॥ वि० ॥६॥वेद ४ वसु गज प्रचंड संवत्सर (१७७४), चैत्री पूनम दिन ध्यायो॥पंमित वीरविजय प्रजुध्याने, आतम आप उरायो रे ॥ वि० ॥७॥इति कलशः॥ ॥ काव्यं ॥ गिरिवरं॥ ॥अथ मंत्रः ॥ ॥ ही श्री परम ॥ ॥ इति पंडितश्रीवीरविजयजीकृत श्रीशजयमहिमागर्मित नवाणुंप्रकारी पूजा संपूर्णा ॥ सर्व गाथा॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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