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श्रीवीरविजयजीकृत नवाएंप्रकारी पूजा. श्६ए ॥ती० ॥२॥ परजव परमाधामीने, वश पमशे ॥ वैतरणी नदीमा जलशे, अग्निने कुंडे बलशे, नहीं शरणुं को ॥ती॥३॥पूरव नवाणुं नाथजी, यहां
आव्या ॥ साधु केश मोद सधाव्या, श्रावक पण सिकि सुहाव्या, जपतां गिरिनाम ॥ ती ॥४॥ अष्टोत्तरशतकूट ए, गिरिठामे ॥ सौंदर्य यशोधर नामे, प्रीतिमंडण कामुक कामे, वली सहजानंद ॥ ती० ॥५॥ महेंअध्वज सरवारथ, सिक कहीए ॥प्रियंकर नाम ए सहीए, गिरिशीतल गये रहीए, नित्य करीए ध्यान ॥ती॥६॥ पूजा नवाणुं प्रकारनी, एम कीजे ॥ नरजवनो लाहो लीजे, वली दान सुपात्रे दीजे, चढते परिणाम ॥ ती ॥७॥ सेवन फल संसारमां, करे लीला॥रमणी धन सुंदर बाला, शुजवीर विनोद विशाला, मंगल शिवमाल ॥ ती॥॥इति एकादशानिषेके उत्तरपूजा समाप्ता॥
॥ अथ कलश ॥ धन्याश्रीरागण गीयते ॥
॥गायो गायो रे विमलाचल तीरथ गायो, पर्वतमा जेम मेरु महीधर, मुनिमंमल जिनरायो॥तरुगणमा जेम कल्पतरुवर, तेम ए तीर्थ सवायो रे ॥ वि०॥१॥ यात्रा नवाणुं शहां अमे कीधी, रंग
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