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श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. २७१ ॥अथ श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत विंशति
स्थानक तपःपूजा प्रारंनः॥ ॥ तत्र प्रथम श्रीअरिहंतपदपूजा प्रारंजः॥
॥ दोहा॥ ॥ श्रीशंखेश्वर पासजी, सकल जंतु हितकार ॥ प्रणमी पदयुग तेहना, स्तवनपूजा रचुं सार ॥१॥ बहुविध तप जप दाखीया, लोक लोकोत्तर सब ॥ वीश स्थानक सम को नहीं, सशुरु वदे पसल ॥२॥ अरिहंतादिक पद तणुं, कारण ए तप सत्य ॥ त्रिकयोगे प्रजु पूजीए, नावणुं जेहवी शक्त॥३॥ निर्मल पीठ त्रिकोपरि, स्थापी जिनवर वीश ॥ पूजोपकरण मेलवी, पूजीए विश्वावीश ॥४॥ एक एक पद वर्णव करी, पूजा पंच प्रकार ॥ श्रमविध एकवीश जाणीए, सेवो सत्तर उदार ॥५॥ सजल कलश श्रम जातिना, जिनाणा शिर धार ॥ पूजे स्थानक वीशने, तस नहीं छरित प्रचार ॥ ६ ॥ परम पंच परमेष्ठीमां, परमेश्वर नगवान् ॥चार निखेपे ध्याइए, नमो नमो जिनजाण ॥७॥
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