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________________ २५६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. नावी चोवीशी श्रावशे, पद्मनानादि जिणंद ॥१॥ ॥ ढाल ॥ मनमोहन मेरे ॥ ए देशी॥ ॥ धन धन ते जग प्राणीया, मनमोहन मेरे ॥ करता नक्ति पवित्र ॥म॥ पुण्यराशि महाबल गिरि ॥ म ॥ दृढशक्ति शतपत्र ॥ म० ॥१॥ विजयानंद वखाणीए ॥ म० ॥ नकर मदापीठ ॥ म० ॥ सुरगिरि महागिरि पुण्यथी । म ॥ आज में नजरे दीत ॥ म ॥२॥ एंशी योजन प्रथमारके॥ म०॥ सित्तेर साठ पचास ॥ मग ॥बार योजन सात हाथनो ॥ मग ॥बहे पोहोलो प्रकाश ॥म॥३॥ पंचम काले पामवो ॥ म ॥ उलहो प्रजुदेदार ॥ म ॥ एकेंख्यि विकलेजिमां ॥ म ॥ काढ्यो अनंतो काल ॥ म ॥ ४॥पंचेंप्रिय तिर्यंचमां ॥म॥नहीं सुखनो लवलेश ॥ म० ॥ घुर्णाकर न्याये लह्यो ॥ म० ॥ नरलव गुरुजपदेश ॥ म ॥५॥ बहुश्रुत चरणनी सेवना ॥ म॥ वस्तुधर्म उलखाण ॥म॥ आत्मखरूप रमणे रमे ॥म०॥ न करे जूठ मफाण ॥ मग ॥६॥ कारणे कारज नीपजे ॥ म०॥ अव्य ते नाव निमित्त म०॥निमित्तवासी आतमाम बावनाचंदन शीत ॥ म०॥७॥ अन्वयव्यतिरेके करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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