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________________ श्रीवीरविजयजीकृत नवाणुंप्रकारी पूजा. १५३ धूप दीप फल नैवेद्य मूकी, नमीए नाम हजार ॥ सु० ॥२॥ आप अधिक शत टुंक जलेरी, महोटी तिहां एकवीश ॥ सु० ॥ शत्रुजयगिरि टुंक ए पहेली, नाम नमो निशदीश ॥ सु० ॥३॥ सहस अधिक अठ मुनिवर साथे, बाहुबली शिवगम ॥ सु०॥बाहुबली टुंक नाम ए बीजं, त्रीजुमरुदेवी नाम ॥ सु० ॥४॥ पुंमरीकगिरि नाम ए चोथु, पांच कोमी मुनि सिफ ॥ सु०॥ पांचमुं हुंक रैवतगिरि कहीए, तेणे ए नाम प्रसिक ॥ सु॥५॥ विमलाचल सिझराज नगीरथ, प्रणमीजे सिहदेव ॥ सु० ॥ नहरी पाली एणे गिरि श्रावी, करीए जन्म पवित्र ॥ सु०॥ ६॥ पूजाए प्रजु रीज रे, साधुं कार्य अनेक ॥ सु० ॥ श्रीशुनवीर हृदयमा वसजो, अलबेला घमी एक ॥ सु० ॥७॥ ॥ अथ काव्यं ॥ सुतविलंबितवृत्तम् ॥ ॥ गिरिवरं विमलाचलनामकं, रुपनमुख्यजिनांघिपवित्रितं ॥ हृदि निवेश्य जलैर्जिनपूजनं, विमलमाप्य करोमि निजात्मकं ॥१॥ ए काव्य प्रत्येक पूजा दीप कहे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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