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________________ २५२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ पंडितश्रीवीरविजयजीकृत श्रीशत्रुंजयमहिमागति नवाणुंप्रकारी पूजा प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ श्रीशंखेश्वर पासजी, प्रणमी शुज गुरु पाय ॥ विमलाचल गुण गाइशुं समरी शारद माय ॥ १ ॥ प्राये ए गिरिशाश्वतो, महिमानो नहीं पार ॥ प्रथम जिणंद समोसा, पूर्व नवाएं वार ॥ २ ॥ अढीय द्वीपमा एसमो, तीर्थ नहीं फलदाय ॥ कलियुग कल्पतरु वमो, मुक्ताफलशुं वधाय ॥ ३ ॥ यात्रा नवाएं जे करे, उत्कृष्ट परिणाम || पूजा नवाएं प्रकारनी, रचतां अविचल धाम ॥ ४ ॥ नव कलशे श्रनिषेक नव, एम एकादश वार || पूजा दीव श्रीफल प्रमुख, एम नवाएं प्रकार ॥ ५ ॥ Jain Educationa International " ॥ पूजा ॥ ढाल ॥ कुंबखमानी देशी ॥ ॥ यात्रा नवाएं करीए सलूणा, करीए पंच सनात ॥ सुनंदाको कांत नमो ॥ गणणुं लख नवकार गणजे, दोयम बह सात ॥ सु० ॥ १ ॥ रथयात्रा प्रदक्षिणा दीजे, पूजा नवाएं प्रकार ॥ सु०॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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