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________________ श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश श्रागमनी पूजा.२४७ ॥ अथ सप्तम नैवेद्यपूजा प्रारंनः ॥ ॥ दोहा॥ ॥ नैवेद्यपूजा सातमी, सात गति अपहार ॥ सात राज्य ऊरध जश, वरीए पद अणाहार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ विमलाचल वेगे वधावो ॥ ए देशी॥ ॥ नित्य जिनवर मंदिर जइए, मेवा मीग थालमें लहीए ॥ नैवेद्यनी पूजा करीए, तेम झाननी आगल धरीए रे ॥ श्रुत आगम सुंदर सेवो, मनमंदिर आगम दीवो रे॥श्रुतः॥१॥पहेढुं अनुयोगकुवारे, साते नय नंगप्रकारे ॥ निदेपानी रचना सारी, गीतारथवचने धारी रे॥ श्रुत॥मनः॥२॥ बीजु श्रुत नंदी वंदी, सुणतां दिल होय आनंदी॥ सवि सूत्र तणो सरवायो, जल्पे त्रिशलानो जायो रे ॥ श्रुतम् ॥ मन ॥३॥ मति आदि पंच प्रकार, नाख्या के ज्ञान अधिकार ॥ बहुला दृष्टांत देखावी, शुनवीरे रीत उलखावी रे ॥ श्रुतम् ॥ मन ॥४॥ ॥दोहा॥ ॥ए पीस्तालीश वर्णव्यां,आगम जिनमत माहि॥ मणुथजन्म पामी करी, नक्ति करो उत्साही॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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