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________________ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ दोहा ॥ ॥ ज्ञानउदय करवा जणी, तप करता जिनदेव ॥ ज्ञाननिधि प्रगटे तदा, समवसरण सुर सेव ॥ १ ॥ ॥ अथ गीतं ॥ राग काफी ॥ खियनमें गुलजारा ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रागम विकारा, जिणंदा तेरा आगम बे यविकारा॥ ए टेक ॥ ज्ञानज्योति प्रगटे घट मांहे, जेम रवि किरण हजारा॥ जि०॥ मिथ्यात्वी पुर्नय स विकारा, तगतगता नहीं तारा ॥ जि० ॥ १ ॥ त्रीजुं उंघनिर्युक्ति वखाएं, मुनिवरना श्राचारा ॥ जि० ॥ चोथुं आवश्यक अनुसरतां, केवली चंदनबाला ॥ जि० ॥ २ ॥ श्रल्पागम तप क्लेश ते जाणो, बोले उपदेशमाला ॥ जि० ॥ ज्ञानजक्ति जिनपद नीपजावे, नामे जयंत भूपाला || जि० ॥ ३ ॥ सायरमां मीठी मेहेरावल, श्रृंगी मत्स्य श्राहारा ॥ जि० ॥ शरण विहीना दीना मीना, र्जर ते सायर खारा ॥ जि० ॥ ४ ॥ पंचम काल फणी विषज्वाला, मंत्र मणी विष दारा ॥ जि० ॥ श्रीशुनवीर जिनेश्वर आगम, जिनपकिमा जयकारा ॥ जि० ॥ ५ ॥ इति षष्ठाक्षतपूजा समाप्ता ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only २४६ - www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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