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श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश यागमनी पूजा. १४५ रे, उत्तराध्ययन मकार ॥ स० ॥ जेम० ॥ ४ ॥ ज्ञान विना मुक्ति नहीं रे, किरिया ज्ञानीने पास ॥ स० ॥ श्रीशुवीरनी वाणीए रे, शिवकमला घरवास ॥ स०॥ जेम० ॥ ५ ॥ इति पंचम दीपकमालपूजा समाप्ता ॥ ॥ अथ षष्टातपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ चरम समय डुप्पसह लगे, वरते श्रुत विछेद ॥ मूल सूत्र तेथे जाखीयां, ते कहेशुं च नेद ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ राग सारंग ॥ हम मगन जए प्रभु ज्ञानमां ॥ ए देश ॥
॥ जिनराजनी पूजा कीजीए ॥ ए टेक ॥ जिनपकिमा आगे प्रनुरागे, अक्षत पूजा कीजीए॥ कृतपद जि. लाप धरीने, आगमनो रस पीजीए ॥ जिन० ॥ १ ॥ प्रजुपमा देखी प्रतिबुद्धा, पूरवयी उद्धरीजीए ॥ दशवैकालिक दश अध्ययने, मनक मुनि हित कीजीए ॥ जिन० ॥ २ ॥ उत्तराध्ययन ते बी जुं श्रागम, मूल सूतरमां गणीजीए ॥ अध्ययनो बत्रीश रसालां, सरुसंगे सुबीजीए ॥ जिन० ॥ ३ ॥ सोल प्रहरनी देशना देतां, चतुर चकोरा रीजीए ॥ श्रीशुनवीर जिनेश्वर श्रागम, अमृतनो रस पीजीए ॥ जिन० ॥४॥
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