SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ अथ गीतं ॥ राग वसंत फाग ॥ वीरकुमरनी वातमी, केने कहीए ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रागमनी यशातना, नवि करीए ॥ नवि करीए रे नवि करीए, श्रुतनक्ति सदा अनुसरीए, शक्ति अनुसार ॥ श्राग० ॥ १ ॥ ज्ञानविराधक प्राणीया, मतिहीना ॥ ते तो परजव दुःखीया दीना, नरे पेट ते पराधीना, नीच कुल अवतार ॥ ० ॥ २ ॥ अंधा लूला पांगुला, पिंमरोगी ॥ जनम्या ने मातवियोगी, संताप घणो ने शोगी, योगी अवतार ॥ ० ॥ ३ ॥ मूंगा ने वली बोबमा, धनहीना ॥ प्रिया पुत्र वियोगे लीना, मूरख श्रविवेके जीना, जाणे रणनुं रोऊ ॥ ० ॥ ४ ॥ ज्ञान ती आशातना, करी पूरे ॥ जिननक्ति करो नरपूरे, रहो श्रीशुनवीर हजूरे, सुख मांहे मगन्न ॥ ० ॥ ५ ॥ इति सप्तम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥ ७ ॥ ॥ अथाष्टम फलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ ज्ञानाचारे वरततां ज्ञान लहे नर नार ॥ जिनआगमने पूजतां, फलथी फल निरधार ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy