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श्रीदेवचंद्रजीकृत स्नात्रपूजा.
॥ दाल ॥ पांचमी ॥
॥ श्रीशांति जिननो कलश कहीशुं, प्रेम सागर पूर ॥ ए देशी ॥
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॥ श्रीतीर्थपतिनुं कलश मऊन, गाइए सुखकार ॥ नरखित्त मंगल डुड् विरुण, जविक मन आधार ॥ तिहां राव राणा हर्ष उत्सव, थयो जग जयकार ॥ दिशिकुमरी अवधि विशेष जाणी, लह्यो हर्ष पार ॥ १ ॥ निय अमर श्रमरी संग कुमरी, गावती गुणबंद ॥ जिन जननी पासे श्रावी पोहोती, गहगढ़ती आणंद ॥ हे माय ! तें जिनराज जायो, शुचि वधायो रम्म ॥ श्रम जम्म निम्मल करण कारण, करीश सूईकम्म ॥ २ ॥ तिहां भूमि शोधन दीप दर्पण, वाय वींजण धार ॥ तिहां करीय कदली गेढ़ जिनवर, जननी मकनकार ॥ वर राखमी जिनपाणि बांधी, दीए एम आशीष ॥ जुग कोमाकोमि चिरं जीवो, धर्मदायक ईश ॥ ३॥
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॥ ढाल ॥ बट्ठी ॥ एकवीशानी ॥
॥ जगनायकजी, त्रिभुवन जन हितकार ए ॥ परमातमजी, चिदानंद घनसार ए ॥ एदेशी ॥ ॥ जिण रयणीजी, दश दिशि उज्ज्वलता घरे॥ शुज लग
वि० २
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