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________________ १६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. जलतारण प्रगट्यो जहाज ॥ १॥ नवअमवी पारग सबवाह, केवल नाणाश्य गुण अगाह ॥ शिव साधन गुण अंकुरो जेह, कारण जलव्यो श्रासाढी मेह ॥३॥हरखे विकसी तव रोमराय, वलयादिकमां निज तनु न माय ॥ सिंहासनथी उठ्यो सुरिंद, प्रणमंतो जिन आनंदकंद ॥३॥ सग श्रम पय सामोआवी तब, करी अंजलिय प्रणमीय मन ॥ मुखे जाखे ए क्षण आज सार, तिय लोय पहु दीगे उदार ॥४॥ रे रे निसुणो सुरलोय देव, विषयानल तापित तुम सवेव ॥ तसु शांति करण जलधर समान, मिथ्या विष चूरण गरुमवान ॥ ५॥ ते देव सकल तारण समन, प्रगट्यो तस प्रणमी हुवो सनाथ ॥एम जंपी शक स्तव करेवि, तव देव देवी हरखे सुणेवि ॥६॥ गावे तव रंजा गीत गान, सुरलोक हुवो मंगल निधान ॥ नरदेने श्रारज वंश गम, जिनराज वधे सुर हर्ष धाम ॥ ७॥ पिता माता घरे उत्सव अशेष, जिनशासन मंगल श्रति विशेष ॥ सुरपति देवादिक हर्ष संग, संयमअर्थी जनने उमंग॥७॥ शुज वेला लगने तीर्थनाथ, जनम्या सादिक हर्ष साथ॥सुख पाम्या त्रिजुवन सर्व जीव, वधा वधाइ थश्अतीव॥ए॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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