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१७ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. नेजी,ज्योतिष चक्र तेसंचरेजिन जनम्याजी,जेणे श्रवसर माता घरे॥तेणे अवसरजी,शासन पण थरहरे॥
॥त्रुटक ॥ ॥यरहरे आसन इंऽ चिंते,कोण अवसर ए बन्यो। जिन जन्म उत्सव काल जाणी,अतिही आनंद उपन्यो ॥निज सिद्धि संपत्ति हेतु जिनवर,जाणी जक्ते उम्मह्यो ॥विकसित वदन प्रमोद वधते,देवनायक गहगह्यो।।
॥ ढाल ॥ ॥तव सुरपतिजी,घंटानाद कराव ए॥सुरलोकेजी, घोषण एह देवराव ए ॥ नरक्षेत्रेजी, जिनवर जन्म हु श्र॥तसु नगतेजी, सुरपति मंदरगिरि गछे ॥
॥त्रुटक ॥ ॥गति मंदर शिखर उपर, जवन जीवन जिन तणो ॥ जिन जन्म उत्सव करण कारण, आवजो सवि सुरगणो॥तुम शुछ समकित थाशे निर्मल, देवाधिदेव नीहालतां ॥आपणां पातिक सर्व जाशे, नाथ चरण पखालतां ॥२॥
॥ ढाल ॥ ॥एम सांजलीजी,सुरवर कोमी बहुमली ॥ जिनवंदनजी, मंदरगिरि सामा चली ॥ सोहमपतिजी,
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