________________
श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश श्रागमनी पूजा. ३५ विनयी लण्या रे, पहेले पूरव उत्पाद ॥ झा० ॥ अ० ॥ वस्तु चन्द अग्रायणं। रे, श्रम वस्तु वीर्यप्रवाद ॥ ज्ञा० ॥ ॥ अ ॥ अस्तिप्रवादे अढार रे, बार वस्तु ज्ञानप्रवाद ॥झा॥4॥ सत्यप्रवादे दोय वस्तु के रे, सोल वस्तु यात्मप्रवाद ॥ज्ञा ॥५॥ ॥ कर्मप्रवादे त्रीश धारीए रे, वीश वस्तु पूरव पचरकाण ॥झा० ॥ अ०॥ पन्नर विद्याप्रवादमा रे, बार वस्तु कही कल्याण ॥ ज्ञान ॥६॥ अ०॥प्राणावायमां तेर रे, त्रीश वस्तु क्रियाविशाल ॥ ज्ञा० ॥अ॥ पणवीशे करी सोहतुं रे, चउदमुं लोकबिंदु सार ॥ ज्ञा० ॥॥ अ॥ पुंज मशी खखे त्रणसें रे, त्र्याशी गज सोल हजार ॥ झा ॥ अ॥ श्रीशुजवीरना गणधरु रे, रचतां त्रीजो अधिकार ॥ ज्ञा० ॥७॥
दोहा॥ ॥ दश पूरव पूरण जणे, लब्धि कीराश्रव होय ॥ तेणे जिनकल्प निवारीयो, ज्ञान समो नहीं कोय ॥१॥
॥ अथ गीतं ॥ मनमोहन मेरे ॥ ए देशी ॥ ॥नेद चोथो हवेसांजलो॥मनमोहन मेरे॥दृष्टि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org