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________________ २३४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. जिन अणगार ॥ ते कारण बागम तणी, पूजा नक्ति विशाल ॥ ७॥ ज्ञानोपकरण मेलीए, पुस्तक आगल सार॥पीठ रची जिनबिंबने, थापीजे मनोहार॥७॥ झानउदय अरिहा तणी, सांजली देशना सार ॥ देव देवी नंदीश्वरे, पूजा विविध प्रकार॥ए॥ तेम श्रागम हैडे धरी,पूजो श्रीजिनचंद॥ध्येय ध्यान पद एकथी, पामो पद महानंद ॥ १० ॥ न्हवण विलेपन कुसु मनी, धूप दीप जलकार ॥अक्षत नैवेद्य फल तणी, पूजा श्रष्ट प्रकार ॥११॥ ॥ ढाल ॥ अने हारे व्हालोजी वाये जे वांसली रे॥ ए देशी ॥ ॥ अने हारे गंगा वीरसमुना रे, जलकलश जरी नर नारी ॥ ज्ञाने वमा श्रुतकेवली रे ॥१०॥ न्हवण करो प्रनु वारने रे, हाष्टवादना नाषणहार ॥हा॥१॥ अ॥ पांचे नेद तेदना रे, सांजलतां विकसे नाण ॥ झा ॥१०॥ परिकरमे सात श्रेणिजे रे, अठ्याशी सूत्र वखाण ॥ ज्ञा० ॥॥ श्र०॥ पूर्वगते चनद पूर्व में रे, महामंत्र ने विद्या जरेल ॥ झा ॥ अ॥जंबू वेलंधर देवतारे, धरे पूर्व समुज्नी वेल ॥ ज्ञा० ॥३॥ अ॥ दश वस्तु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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