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श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश श्रागमनी पूजा. २३३
॥ अथ ॥
॥ पंमित श्रीवीरविजयजीकृत पीस्तालीश आगमनी प्रष्टप्रकारी पूजा प्रारंभः ॥
॥ तत्र ॥
॥ प्रथम जलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ श्रीशंखेश्वर पासजी, साहेब सुगुण गरिह ॥ शुभ गुरु चरण पसायथी, श्रुतनिधि नजरे दीठ ॥ १ ॥ शासननायक वंदीए, त्रिशला मात मल्हार ॥ जस मुखी त्रिपदी लड़ी, सूत्र रचे गणधार ॥ २ ॥ सुधर्मा गणधर तणी, रचना वरते सोय ॥ द्वादश अंग थकी अधिक सूत्र नहीं जग कोय ॥ ३ ॥ श्रागे आगम बहु दतां, अर्थविदित जगदीश ॥ कालवशे संप्रति रह्यां, आगम पीस्तालीश ॥ ४ ॥ श्रथमते केवल रवि, मंदिरदीपक ज्योत ॥ पंचम श्रारे प्राणीने, श्रागमनो उद्योत ॥ ५ ॥ प्रथम ज्ञान पछी दया, दशवैकालिक वा ॥ वस्तुतत्त्व सवि जाणीए, ज्ञानथी पद निर्वाण ॥ ६ ॥ ज्ञाननक्ति करतां थका, पूज्य
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