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________________ १७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथ पंचमत्रते षष्ठ धूपपूजा प्रारंनः ॥ ॥दोहा॥ ॥ अणुव्रत पंचम श्रादरी, पांच तजी अतिचार॥ जिनवर धूपे पूजीए, त्रिशला मात महार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ मारी अंबाना मांडवमा हेच ॥ ए देशी॥ ॥मनमोहनजी जगतात,वात सुणो जिनराजजी रे॥ नविमलीयो या संसार, तुम सरिखो रे श्रीनाथजी रे ॥ ए आंकणी ॥ कृष्णागरु धूप दशांग, उखेवी करूं विनति रे ॥ तृष्णातरुणी रसलीन, हुँ रऊल्यो रे चारे गति रे ॥ तिर्यंच तरुनां मूल, राखी रह्यो धन उपरे रे ॥ पंचेंडि फणीधररूप, धन देखी ममता करे रे ॥ मन ॥१॥ सुर लोनी बे संसार, संसारी धन संहरे रे ॥ त्रीजे जव समरादित्य, साधु चरित्रने सांजले रे॥नरनव मांहे धन काज, जाऊ चढ्यो रणमां रड्यो रे ॥ नीचसेवा मूकी लाज, राज्यरसे रणमां पड्यो रे ॥ मन ॥२॥ संसार मांहे एक सार, जाणी कंचन कामनी रे॥ न गणी जपमाला एक, नाथ निरंजन नामनी रे ॥ नाग्ये मलीया नगवंत, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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