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________________ श्रीवीरविजयजीकृत छादशवत पूजा. १७ पड्या पासे ॥ मेरे० ॥ ३॥ दश शिर रावण रणमा रोल्यो, सीता सतीमां मोटी॥सर्व थकी जो ब्रह्मव्रत पाले, नावे दान हेम कोटि । मेरे ॥ वैतरणीनी वेदन मांहे, व्रत नांगे ते पेसे ॥ विरतिने प्रणाम करीने, इंसनामां बेसे ॥मेरे॥४॥मदिरा मांसथी वेद पुराणे, पाप घणुं परदारा ॥ विषकन्या रंमा पण अंधा, व्रतनंजक अवतारा ॥मेरे॥व्रत संजाले पाप पखाले, सुर तस वांबित साधे॥ कल्पतरु फलदायक ए व्रत, जग जश कीरति वाधे॥ मेरे ॥ ५॥ दशमे अंगे बत्रीश उपम, शीलवती व्रत पाली ॥ नाथ नीहाली चरणे आयो, नेह नजर तुम नाली ॥ मेरे० ॥ हाथी मुखसे दाणो निकसे, कीमी कुटुंब सह खावे ॥ श्रीशुनवार जिनेश्वर साहेब, शोना अम शिर पावे ॥ मेरे ॥६॥ ॥ काव्यं ॥ श्रद्धासंयुतम् ॥१॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ दीपं य० ॥ स्वा० ॥ ॥इति चतुर्थव्रते पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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