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________________ २१६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथ चतुर्थव्रते पंचम दीपकपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा॥ ॥ चोथु व्रत हवे वरणवू, दीपक सम जस ज्योत ॥ केवल दीपक कारणे, दीपकनो उद्योत ॥ १॥ ॥ ढाल ॥ वृंदावनना वासी रे, विठला तें मुजने विसारी ॥ ए देशी॥ ॥ए व्रत जगमा दीवो,मेरे प्यारे, एव्रत जगमां दीवो ॥ ए टेक ॥ परमातम पूजीने विधिलं, गुरु आगल व्रत लीजे ॥ अंतिचार पण दूर करीने, परदारापूर कीजे ॥मेरे॥ निज नारी संतोषी श्रावक, अणुव्रत चोथु पाले॥ देव तिरी नर नारी नजरे, रूप रंग नवि धारे॥मेरे ॥१॥व्रतने पीमा कामनी क्रीमा, उरगंधा जे बाली ॥ नासा विण नारी पण रागे, पंचासकमां टाली ॥ मेरे ॥ विधवा नारी बालकुमारी, वेश्या पण परजाती ॥ रंगे राती पुर्बल गाती, नरमारण ए काती ॥ मेरे ॥२॥परनारीहेते श्रावकने, नव वामो निरधारी ॥ नारायण चेडा महाराजे, कन्यादान निवारी ॥मेरे॥जरतरायने राज नलावी, राम रह्या वनवासे ॥ खरपूषण नारी सविकारी, देखी न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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