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श्रीवीरविजयजीकृत द्वादशत्रत पूजा. २१
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अवसर पामी व्रत यादरुं रे ॥ गयो नरके मम्मण शेव, सांजली लोनथी सरुं रे ॥ मन० ॥ ३ ॥ नवविध परिग्रह परिमाण, आणंदादिकनी परे रे ॥ अथवा इछा परिमाण, धण धन्नादिक उच्चरे रे || वली सामान्ये षट् नेद, उत्तर चोसठ दाखीया रे ॥ दशवैकालिक निर्युक्ति, नद्रबाहु गुरु जाखीया रे ॥ मन० ॥ ५ ॥ परिमाण अधिकुं होय, तो तीरथे जइ वावरो रे ॥ रोकाये जवनुं पाप, बाप खरी जिननी धरो रे ॥ धन शेठ धरी धनमान, चित्रावेली ने परिहरी रे ॥ शुनवीर प्रजुने ध्यान, संतोषे शिवसुंदरी रे ॥ मन० ॥ ५ ॥
॥ काव्यं ॥ श्रद्धा संयुत० ॥ १ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ कूँ। श्री परम० ॥ धूपं य० ॥ स्वा० ॥ ॥ इति पंचमत्रते षष्ठ धूपपूजा समाप्ता ॥ ६ ॥
॥ अथ षष्ठते सप्तम पुष्पपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ फूल मुलक मेघ ज्युं, वरसावी जिनचंग ॥ गुंणवत त्रणे तेहमां दिशि परिमाणने रंग ॥ १ ॥
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