________________
२.०६
विविधः सूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥ मन० ॥ निःकर्मा च दृष्टांत ॥ मन० ॥ ७ ॥ सुरपति सघला तिहां मले ॥ मन० ॥ क्षीरोदधि आणे नीर ॥ मन० ॥ स्नान विलेपन भूषणे ॥ मन० ॥ देवडूष्ये स्वामिशरीर ॥ मन० ॥ ८ ॥ शोजावी धरी शिबिका || मन० ॥ वाजित्र ने नाटक गीत ॥ मन० ॥ चंदन चय परजालता ॥ मन० ॥ सुरजक्ति शोक सहित ॥ मन० ॥ ॥ शुज करे ते उपरे ॥ मन० ॥ दाढादिक स्वर्गे सेव ॥ मन० ॥ जावउद्योत गये थके ॥ मन० ॥ दीवाली करता देव ॥ मन० ॥ १० ॥ नंदीसर उत्सव करे ॥ मन० ॥ कल्याणक मोक्षानंद ॥ मन० ॥ वर्ष अढीसें श्रांतरुं ॥मन०॥शुनवीर ने पास जिणंद ॥ म०११
॥ अथ गीतं ॥ घरे आवो ढोला ॥ ए देशी ॥ ॥ उत्सव रंग वधामणां, प्रभु पासने नामे ॥ कल्याएक उत्सव कीयो, चढते परिणामे ॥ उत्सव ॥ १ ॥ शत वर्षायु जीवीने, अक्षय सुख स्वामी ॥ तुम पद सेवा जतिमां, नवि राखुं खामी ॥ ज० ॥ २ ॥ साची जक्ते साहेबा, रीको एक वेला || श्री शुजवीर दुवे सदा, मनवांबित मेला ॥ ७० ॥ ३ ॥
॥ अथ कलश ॥
॥ गायो गायो रे, शंखेश्वर साहेब गायो ॥ यादव
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International