SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १५ ॥ढाल॥एक समे सामलियाजी॥वृंदावनमां॥ए देशी॥ ॥रंगरसीया रंगरस बन्यो।मनमोहनजी ॥को बागल नवि कहेवाय ॥ मनडं मोडं रे, मनमोहनजी ॥ वेधकता वेधक लदे॥ मनः॥बीजा बेग वा खाय ॥ मन ॥१॥लोकोत्तर फल नीपजे ॥ मन॥ मोटो प्रजुनो उपकार ॥ मन० ॥ केवलनाण दीवाकरु ॥ मन ॥ विचरंता सुरपरिवार ॥ मन ॥२॥ कनक कमल पगलां वे ॥ मन ॥ जल बुंद कुसुम वरसात ॥मन०॥ शिरबत्र वली चामर ढले ॥मन॥ तरु नमतां मारग जात ॥ मन ॥३॥ उपदेशी केश तारीया॥मन॥ गुण पांत्रीश वाणी रसाल ॥मन॥ नर नारी सुर अप्सरा॥ मनः॥प्रनु आगल नाटकशाल ॥ मन० ॥४॥ अवनीतल पावन करी ॥ मन ॥ अंतिम चोमासु जाण ॥ मन ॥ समेतशिखर गिरि श्रावीया।मनणा चमता शिवघर सोपान ॥मन ॥५॥ श्रावण सुदि आपम दिने ॥मन। विशाखाए जगदीश॥ मन ॥ अपसण करी एक मासन ॥ मन ॥ साथे मुनिवर तेत्रीश॥मन॥६॥ काउस्सग्गमा मुक्ति वस्या ॥ मन ॥ सुख पाम्या सादि अनंत ॥ मन ॥ एक समय समश्रेणिश्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy