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________________ श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. २०७ लोकनी जरा निवारी, जिनजी जगत् गवायो॥पंच कल्याणक उत्सव करतां, श्रम घर रंग वधायो रे ॥शंखे ॥१॥ तपागल श्री सिंहसूरिना, सत्य विजय बुध गयो । कपूरविजय गुरु खिमा विजय तस, जशविजयो मुनिरायो रे ॥ शंखे० ॥२॥ तास शिष्य संवेगी गीतारथ,शांत सुधारस नाह्यो॥श्री शुनविजय सुगुरु सुपसाये, जयकमला जग पायो रे ॥शंखे ॥३॥ राजनगरमां रही चोमासु, कुमति कुतर्क हगयो ॥ विजयदेवेंज सूरीश्वर राज्ये, ए अधिकार बनायो रे ॥ शंखे ॥४॥अढारसें नेव्याशी अदय त्रीज, अदत पुण्य उपायो ॥ पंडित वीरविजय पद्मावती, वांडित दाय सहायो रे ॥ शंखे ॥ ॥ काव्यं ॥ नोगी यदा ॥१॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ श्री श्री परम ॥ नैवेद्यं य० ॥ खा ॥ इति निर्वाणकल्याणके अष्टम नैवेद्यपूजा संपूर्णा ॥७॥ ONE तिमितश्रीवीरविजयजीकृतपंचकल्याणकमहोत्सवेऽष्टप्रकारी पूजा संपूर्णा ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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