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________________ श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १९०५ ॥ अथ ॥ ॥ जन्मकल्याण के चतुर्थ जलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ चलितासन सोहमपति, रची वैमान विशाल ॥ प्रभु जन्मोत्सव कारणे, आवंता तत्काल ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ काज सिद्धां सकल दवे सार ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे शक्र सुघोषा वजावे, देव देवी सर्व मिलावे ॥ करे पालक सुर अनिधान, तेणे पालक नामे विमान ॥ १ ॥ प्रभु पासनुं मुखडुं जोवा, जवजवनां पातक खोवां ॥ चाले सुर निज निज टोले, मुख मंगलिक माला बोले ॥ प्र० ॥२॥ सिंहासन बेठा चलीया, हरि बहु देवे परवरीया ॥ नारी मित्रना प्रेरया यावे, केक पोताने जावे ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ हुकमे केइ नक्ति नरेवा, वली केश्क कौतुक जोवा ॥ दय कासर केशरी नाग, फणी गरुम चढ्या केइ बाग ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ वादन वैमान निवास, संकीर्ण थयुं श्राकाश ॥ के बोले करता तामा, सांकमा जाइ पर्वना दहाडा ॥ प्रभु ॥ ५ ॥ इहां आव्या सर्व आणंदे, जिनजननीने हरि वंदे पांच रूपे हरि प्रभु हाथ, एक ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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