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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. कुमरी, अधोलोकनी वसनारी ॥ सखि० ॥ सूतिघर ईशाने करती, योजन एक अशुचि टाली ॥ सखि० ॥ ४ ॥ ऊर्ध्वलोकनी व कुमारी, वरसावे जल कुसुमाली ॥ सखि० ॥ पूर्व रुचक छ दर्पण धरती, दक्षिपनी म कलशाली ॥ सखि० ॥ ५ ॥ श्रम पछिमनी पंखा धरती, उत्तर अव चामर धारी ॥ सखि० ॥ विदिशिनी चल दीप धरती, रुचक द्वीपनी चठ बाली सखि० ॥ ६ ॥ केल तणां घर त्रण करीने, मर्दन स्नान अलंकारी ॥ सखि० ॥ रक्षा पोटली बांधी बिहुने, मंदिर मेल्यां शणगारी ॥ सखि० ॥ ७ ॥ प्रभु मुखकमले अमरी जमरी, रास रमंती लटकाली ॥ सखि० ॥ प्रभुमाता तुं जगतनी माता, जगदीपकनी धरनारी ॥ सखि० ॥ छ ॥ माजी तुज नंदन घएं जीवो, उत्तम जीवने उपकारी ॥ सखि० ॥ बप्पन दिक्कुमरी गुण गाती, श्रीशुनवीर वचनशाली ॥स खि० ॥णा ॥ काव्यं ॥ जोगी यदा० ॥ १ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ श्री श्री परम० ॥ तान् य० ॥ स्वा० ॥ इति जन्मकल्याण के तृतीय अतपूजा संपूर्णा ॥ ३ ॥
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