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________________ श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १५३ ॥अथ ॥ ॥जन्मकल्याणके तृतीय अदतपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा॥ ॥ रविउदये नृप तेझीया, सुपनपाठक निज गेह ॥ चनद सुपनफल सांजली, वलीय विसा तेह ॥१॥ त्रण ज्ञानशं जपना, त्रेवीशमा अरिहंत ॥ वामाजर सर हंसलो, दिन दिन वृद्धि लहंत ॥२॥ डोहला पूरे नूपति, सखी वृंद समेत ॥ जिन पूजे अदत धरी, चामर पंखा लेत ॥३॥ ॥ ढाल ॥ चित्त चोखे चोरी नवि करीए॥ए देशी ॥ रमती गमती हमुने साहेली, बिहु मली लीजीए एक ताली ॥ सखि आज अनोपम दीवाली॥ लील विलासे पूरण मासे, पोष दशम निशि रढीयाली ॥ सखिम् ॥ १॥ पशु पंखी वसीयां वनवासी, ते पण सुखीयां समकाली॥सखि॥ण राते घर घर उत्सवसे, सुखीयां जगतमें नर नारी ॥ सखि० ॥॥ उत्तम ग्रह विशाखायोगे, जनम्या प्रजुजी जयकारी ॥सखि०॥साते नरके थयां अजुवालां, थावरने पण सुखकारी ॥ सखि० ॥३॥ मात नमी आठे दिक वि० १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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