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________________ १२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. लड़कंत वाब्दा ॥ रुमो मास० ॥ १ ॥ नवमे कलश रूपा तणो रे, दशमे पद्मसर जाए वाल्हा ॥ श्रग्यारमे रत्नाकरु रे, बारमे देवविमान वाल्दा ॥ गंज रत्ननो तेरमे रे, चउदमे वह्निवखाप वाल्हा ॥ उतरतां आकाशथी रे, पेसंता वदन प्रमाण वाब्दा ॥ रुमो० ॥ २ ॥ माता सुपन लही जागीयां रे, अवधि जुवे सुरराज वाल्दा ॥ शक्रस्तव करी वंदीया रे, जननी उदर जिनराज वाल्हा ॥ एणे समे इंद्र ते श्रावीया रे, मा आगल धरी लाज वाल्हा ॥ पुण्यवती तुमे पामीयुं रे, त्रण भुवननुं राज्य वाब्दा ॥ रुडो० ॥ ३ ॥ चउद सुपनना अर्थ कही रे, इंद्र गया निज गम वाल्हा ॥ चनसह इंद्र मली गया रे, नंदीसर जिनधाम वाल्दा ॥ च्यवन कल्याणक उत्सवे रे, श्री फलपूजा गम वाल्हा ॥ श्रीशुनवीर तेणे समे रे, जगत् जीव विश्राम वाल्हा || रुमो० ॥ ४ ॥ ॥ काव्यं ॥ जोगी यदा० ॥ १ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ ॐ श्री परम० ॥ फलानि य० ॥ स्वा० ॥ ॥ इति च्यवनकल्याणके द्वितीय फलपूजा संपूर्णा ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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