SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १९१ ॥अथ ॥ ॥च्यवनकल्याणके द्वितीय फलपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कृष्ण चतुर्थी चैत्रनी, पूर्णायु सुर तेह ॥ वामा मात उदर निशि, अवतरीया गुणगेह ॥१॥ सुपन चतुर्दश मोटकां, देखे माता ताम ॥ रयणी समे निज मंदिरे, सुखशय्या विश्राम ॥२॥ ॥ ढाल ॥ मिथ्यात्व वामीने कोश्या समकित पामी रे ॥ ए देशी॥ ॥ रुमो मास वसंत फली वनराजी रे, रायण ने सहकार वाहा ॥ केतकी जाय ने मालती रे, उमर करे ऊंकार वाल्हा ॥ कोयल मदनर टर्कती रे, बेठी आंबाडाल वाहा ॥ हंसयुगल जल जीलता रे, विमल सरोवर पाल वाहा॥ मंद पवननी लहेरमां रे, माता सुपन नीहाल वाल्हा ॥ ए आंकणी॥ दीगे प्रथम गज उज्ज्वलो रे, बीजे वृषन गुणवंत वाव्हा ॥ त्रीजे सिंहज केसरी रे, चोथे श्रीदेवी महंत वाहा॥ माल युगल फुल पांचमे रे, के रोहिणीकंत वाल्हा ॥ उगतो सूरज सातमे रे, बाग्मे वज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy