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________________ १६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. पिस्तां खरबुज, फनस अंगुर जंबीर॥अहो ॥ शुन चामीकर थाल जरीजे, सिंगोमां अंजीर ॥ अहो ॥ मुग० ॥ कुम ॥ सुम० ॥ एम० ॥३॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ इंसादिक पूजा जणी, फल लावे धरी राग ॥ पुरुषोत्तम पूजी करी, मागे शिवफल त्याग ॥१॥ ॥ अथ गीतं ॥ श्मन रागिणी ॥ महारी सही रे समाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ हरि परे फल मागो नविलोका, फलथी शिवफल रोका रे ॥ धन धन जिनराया॥रायण बीजोरां फल टेटी, पूजत शिववढू नेटी रे ॥ धन ॥१॥ इत्यादिक शुचि फल नवि लावो, थाल विशाल जरावो रे ॥ धन ॥ वर्ष नरे जिनमंदिर श्रावो, जिनवर आगल गवो रे ॥ धन ॥२॥ एम फलपूजा जे नवि करशे, ते शिवरमणी वरशे रे ॥धनः॥ पूजो नवियण निर्मल बुद्धि, पण करी सगविह शुधिरे ॥ धन ॥३॥ कीरयुगलशुं उगता नारी, पूज्या जिन जयकारी रे ॥ धन ॥ कहे शुनवीर अचल सुख लीधो, अंत करमनो कीधो रे ॥ धन ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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