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श्रीवीरविजयजीकृत श्रष्टप्रकारी पूजा. १५
॥अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ नैवेद्यं य० ॥ स्वा० ॥ इति सप्तम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥७॥ ॥ अथाष्टम फलपूजा प्रारंजः॥
॥ दोहा॥ ॥ अष्टमी गति वरवा जणी,आठमी पूजा सार॥ तरु सिंचत फल पामीए, फलथी फल निरधार ॥१॥
॥ ढाल ॥ राग गोमी, मारुणी ॥ ॥ मुगति फली रे फली रे फली, अहो नवियां हो मुगति फली ॥ कुमति टली सुमति नली, एम नर नारी मली रे मली ॥ अहो ना ॥ मुगः ॥ ए टेक ॥ फलपूजा करीए फलकामी, निर्मल श्रीफल लाय ॥ अहो ॥ दाडिम जाख अखोम बदामो, पूगीफल समुदाय ॥ श्रहो० ॥ मुगण॥ कुम०॥ सुमण ॥ एम० ॥१॥मिष्टांग लीबू खारेक कदली, सीताफल अजिराम ॥ अहो ॥ जमरुख तरबुज नीमजां कोहलां, समरी समरी जिननाम ॥ अहो ॥ मुग ॥ कुम० ॥ सुम० ॥ एम० ॥२॥ चुयफल नारिंग
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