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१०४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. पापम पूरी वखाणी ॥ मोतैया कलिसार ने डोगं, एम पक्वान्न मिलाणी हो ॥ पारग पुरु०॥३॥प्रनु पुर ढोइ करो फुःखहाणी, मागो जोमी पाणी ॥ पतितपावन जिन मुजने दीजे, अणाहारी शिवराणी हो ॥ पारग पुरु०॥४॥इति ढाल ॥
॥दोहा ॥ ॥श्रणाहारी पद में कस्यां, विग्गहगश्य अणंत ॥ घर करी ते दीजीए, श्रणाहारी शिवसंत ॥१॥ ॥ अथ गीतं ॥ वंशावनमा एकज गोपी ॥ ए देशी ॥
॥ दाटक थाल जरी पक्वान्ने, शाल दाल शाक पाक रे॥श्रनुजव रस सिंचत नविलहीए,अमृत पदवी नाक रे ॥ हाटक ॥१॥ ताल कंसाल मृदंग बजावत, देता अढलक दान रे ॥ नर नारी जिनगुण गावत श्रावो, जिनमंदिर बहुमान रे।हाटक॥२॥ प्रनु आगे नैवेद्य उवीने, अणाहारी पद मागो रे ॥ पुजलजाव अनादिनी ईहा, टाली जजो प्रजु रागो रे ॥ हाटक० ॥३॥ सग जय वारक सातमी पूजा, करतां गश् सगवारी रे॥वीर कहे हली नृप सुरसुखथी, सातमे नव शिवनारी रे॥हाटक ॥४॥इति गीतं ॥
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