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श्रीवीरविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. १३ दिल ॥३॥ मरुदेवानंदन पद पूजत, अव्य नाव सुखकारी ॥ दिल॥अनुनव अमरालय शुज सुखने, कीरयुगल नवप्यारी ॥ दिल ॥४॥ इति गीतं ॥
॥अथ मंत्रः ॥ ॥ ही श्री परम ॥ अक्षतान् य० ॥ खा॥ शति षष्ठादतपूजा समाप्ता॥६॥ ॥ अथ सप्तम नैवेद्यपूजा प्रारंनः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ निर्वेदी आगल ग्वो, शुचि नैवेद्य रसाल ॥ विविध जाति पक्वान्नशुं, नरी अष्टापद थाल ॥१॥
॥ ढाल ॥ राग काफी ॥ ॥ पुरुषोत्तम गुणखाणी हो, पारग पुरुषोत्तम गुणखाणी ॥ ए टेक ॥ हवे नैवेद्य रसाल ग्वीजे, प्रजु आगल नवि प्राणीमरकी अमृत पाक पतासां, फेणी सरस सोहाणी हो॥पारग पुरु०॥१॥लाखणसाक्ष मगदल साटा, घेवर थाल जराणी ॥ सेव कंसार ने सकरपारा, पेंमा बरफी प्राणी हो ॥ पारग पुरु०॥२॥ खाजां खुरमा खीर खांग घृत,
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