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१७५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. अदर वरीए॥जगत् ॥१॥अथवा उज्ज्वल तंडुला, जरी थालने लावो ॥स्वस्तिक चिहुँ गति चूरणो, वच्चे रत्नने गवो ॥दांहारे वच्चे रत्नने गवो॥हांहां रे घनसार वसावो॥हांहां रे गोधूमादि अणावो ॥ दोहां रे तस पुंज बनावोहांहां रे अनुजव लय लावो॥हांहां रे (जो) होये शिवपुर जावो॥जगत्॥२॥इति ढाल॥
॥ दोहा ॥ . ॥शुफ अखंग अक्षत ग्रही, नंदावर्त्त विशाल ॥ पूरी प्रनु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ॥१॥
॥अथ गीतं ॥ राग बिहागमो॥ ॥शिवनारी मुज प्यारी, दिलनर देखाव हो शिवनारी॥हारे प्रजु तुं तेहनो अधिकारी,दिलजर देखाव हो शिवनारी ॥ए टेक ॥ शालिव्रीहि गोध्रमको ढगलो, प्रनु सन्मुख नर नारी ॥ दिल ॥ धरी अदत अदत पद वरीए, आधि व्याधि नवहारी ॥ दिल ॥१॥ शंजु स्वयं जगतको त्रायक, नायक जगदाधारी ॥ दिल ॥तीर्थपति सुलतान जिनेश्वर, अविचल पद दातारी ॥ दिल ॥२॥ दवह गुण पजाय ने मुद्दा, चजगुण पाममा प्यार ॥ दिल०॥ अव्यादत धरतां श्ह लोके, राज कि नंमारी॥
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