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________________ श्रीवीरविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. १७१ ॥ दी॥ एहवो ॥२॥ पमत पतंग न धूमकी रेखा, नहीं चंचल मारुते रे॥घृत विण पूरे पात्र न तापे, वली नवि मेल प्रसूते ॥ दी॥एदवो ॥३॥ पाप पतंग पमत तेम दीपक, करती दो साहेली रे ॥ जिनमति धनसिरी वरी शिवसुखने, वीर कहे रंगरेली ॥ दी० ॥ एहवो ॥४॥ ॥अथ मंत्रः ॥ ॥ है श्री परम ॥ दीपमाला य० ॥ स्वा॥ इति पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥५॥ ॥ अथ षष्ठादतपूजा प्रारंलः ॥ ___॥ दोहा ॥ ॥ अक्षय पद साधन तणी, अदतपूजा सार ॥ जिनप्रतिमा आगल मुदा, धरीए नवि नर नार॥१॥ ॥ ढाल ॥ राग बिलावल ॥ ॥ जगत्प्रनु आगल नवि, वर अक्षत धरीए ॥ मणि मुक्ताफल खेश्ने, वली स्वस्तिक करीए॥हांहां रे वली स्वस्तिक करीए ॥हांहां रे करी पातक हरीए ॥ हांहां रे ही पूजा समरीए ॥ हांहां रे प्रवहण नर दरिये॥हांहारे जवसायर तरीए॥हांहां रे पद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ____www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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