SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. दाहिण अंगा॥दीपणारयणजमित वर्तुल नाजनमें, धेनुहविष जरीए उबरंगा॥दीप०॥१॥प्राणी उगा. रण कारण फानस, करीए ज्युं नविाय पतंगा॥दी० ॥ जगमग ज्योतिरां दीपक धरीए, अनुनव दीपक सम कितसंगा ॥ दी० ॥॥ जिनमंदिर जश् दीप प्रगट धरी, श्राशय शुभ विमल जल गंगा ॥ दी०॥ ध्यान विमल करतां नवि नासे, दीप विराजथी मोहनुजंगा ॥ दी॥३॥तिम मिथ्यात्व तिमिरकुं हरीए, शार्वर तमहर व्योमपतंगा ॥ दी० ॥ गोश्न देखत नासत तस्कर, ज्युं जिनदर्शन जात अनंगा॥दी०॥४॥ ॥ दोहा॥ ॥ऽव्यदीप सुविवेकथी, करतां फुःख होय फोक॥ नावप्रदीप प्रगट हुवे, नासित लोकालोक ॥१॥ ॥ गीतं ॥ राग आशावरी ॥ गरबानी देशी ॥ ॥ दीपक दीपतो रे, लोकालोक प्रमाण ॥एहवो दीवमो रे, प्रगटे पद निरवाण ॥ दी० ॥ऽव्य थकी दीपकनी पूजा, करतां दो गति रोको रे॥प्रजुपमिमा श्रादर्श करीने, आतमरूप विलोको॥दी॥एदवो ॥ १॥ शुद्ध दशा चेतनकुंप्रगटे, विघटे नवजव कूपो रे ॥ चिदानंद जककोल घटाशें, केवलदीप अनूपो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy