SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवीरविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. १७ हजार ॥ नवियां ॥ जि० ॥ तेम नवि शुद्ध दशांग उखेवो, माहे साकर घनसार ॥ नवि०॥ जि० ॥१॥ परिमल वदने ध्रप कहत हे, सणजो बहिविशाल ॥ज॥जि ॥जिनपद सेवत ऊर्ध्व गति हम, तेम जवि शिवसुखमाल ॥ ज० ॥ जि० ॥२॥ सिखरूपी अरूपी विमलता, वेदी समय त्रिकाल ॥०॥ जि० ॥ एहवा प्रजु पमिमा वामांगे, धरीए धूप रसाल ॥ न ॥ जि० ॥ ३॥ चोथी पूजा चिहुं गतिहार वारी कर्मकी जाल ॥ ज० ॥ जि० ॥ वीर कहे नव सातमे सिझा, विनयंधर नूपाल ॥ न०॥जि०॥॥ ॥अथ मंत्रः ॥ ॥ ही श्री परम ॥ धूपं य० ॥ स्वा० ॥ इति चतुर्थ धूपपूजा समाप्ता ॥४॥ ॥ अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंनः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पंचमी गति वरवा जणी, पंचमी पूजा रसाल ॥ केवल रत्न गवेषवा, धरीए दीपक माल ॥१॥ ॥ ढाल ॥ राग पूर्वी ॥ ॥ दीपक ज्योति बनी नवरंगा, दीनदयालके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy