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१७७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंनः ॥
॥दोहा॥ ॥ कर्मसमिधु दाहन जणी, ध्यानानल सलगाय॥ अव्यधूप करी पातमा, सहज सुगंधित थाय ॥१॥
॥ ढाल ॥राग मालवी गुडो ॥ ॥ जवजय चूरणो, कृष्ण अगर तणो, चूरण करी सुरनि मने ए ॥१॥ अंबर तगरनो, शुचितर अगरनो, वली घनसार बरासने ए॥२॥कुंदरु तुरुकनो, कस्तूरी पुरकनो, नेलीए मेलवी चंदने ए॥३॥नव नव रंगनो, शुद्ध दशांगनो, धूप सुगंध जिनंदने ए ॥४॥ धूपधाणुं जणुं, कंचन रयणर्नु, पावक निर्धूम परजले ए॥५॥ जिनपमंदिर जतां, धूप उखेवतां, दश दिशि महमहे परिमले ए ॥६॥ इति ढाल॥
॥ दोहा ॥ ॥ध्यानघटा प्रगटावीए, वाम नयन जन धूप ॥ मिलतगंध उरे टले, प्रगटे आत्मस्वरूप ॥१॥
॥ गीतं ॥ सबाब रागिणी ॥ जाति फाग ॥
॥जिनवर जगत्दयाल ॥ नवियां ॥ जिनवर जगत्दयाल ॥ जिनपद सेवत धूप उखेवत, सुरवर नयन
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