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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. १६५ हरिबल चक्री शक ज्यु बली ए, निर्बल कुल श्रवतार ॥ दे० ॥ बाहुबली बल श्रदय कीनो, धन धन वालीकुमार ॥ दे०॥३॥सफल यो नरजन्म हमेरो, देखत जिनदेदार ॥ दे० ॥ लोहचमक ज्युं जगतिसें हलीए, पारस सांझ विचार ॥ दे०॥४॥ कीरयुगल बीहि चंचुमें धरते, जिन पूजत नए देव ॥दे॥अदतसे अदतपद देवे, श्रीशुजवीरकी सेव ॥ दे०॥५॥ ॥ काव्यं ॥ तितितले०॥१॥सहजनाव० ॥॥
॥ अथ मंत्रः॥ ॥ उँ ही श्री परम ॥ वीर्यांतरायदहनाय श्रदतान् य० ॥ स्वा० ॥ इति वीर्यांतरायदहनार्थं षष्ठादतपूजा समाप्ता ॥ ६ ॥ ६ ॥ ॥ अथ सप्तम नैवेद्यपूजा प्रारंजः॥
॥ दोहा॥ ॥ निर्वेदी श्रागल धरो, शुचि नैवेद्यनो थाल ॥ विविध जाति पकवानशुं, शाली अमूलक दाल ॥१॥ अणाहारी पद में कस्यां, विग्गह गश्च अणंत ॥ पूर करो एम कीजीए, दी अणाहारी नदंत॥२॥
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