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________________ १६४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥तुर्य विनोबेदनाय दीपं य ॥ स्वा० ॥ इति तुर्य विनोबेदनार्थं पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥५॥ ६१ ॥ ॥अथ षष्ठादतपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वीर्य विघन धनपमलमें, अवराणुं रवितेज ॥ काल ग्रीष्म सम ज्ञानश्री, दीपे आत्म सतेज ॥१॥ अक्षत शुद्ध अखंमशु, नंदावर्त विशाल ॥ पूरीप्रनु सन्मुख रही, थुणीए जगत् दयाल ॥३॥ ॥ ढाल बही॥ राग बंगाली केरबो ॥ सफल न मेरी थाजुकी घरीयां ॥ ए देशी ॥ ॥ जिणंदा प्यारा मुणींदा प्यारा, देखोरी जिणंदा नगवान् ॥ देखोरी जिणंदा प्यारा ॥ ए आंकणी॥ चरम पयमिको मूल विखरीयां, चरम तीरथ सुलतान ॥ दे० ॥ दर्शन देखत मगन नये हे, मागत दायिक दान ॥ दे ॥१॥पंचम विघनको खय उपशमसें, होवत हम नहीं लीन ॥ दे०॥ पांगल वलहीणा पुनियामें, वीरो सालवी दीन ॥ दे ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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