________________
श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १६३ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग काफी ॥ अरनाथकुं सदा
मेरी वंदना ॥ ए देशी ॥ ॥ जिनराजकुं सदा मेरी वंदना ॥ वंदना वंदना वंदना रे॥जिनराजकुं स ॥ए आंकणी॥ उपजोगांतराय हावी, जोगीपद महानंदना रे॥जि०॥अंतराय उदये संसारी, निर्धनने परबंदना रे ॥ जिण ॥१॥ देश विदेशे घर घर सेवा, नीमसेन नरिंदनारे ॥ जि ॥ सुणीय विपाक सुखी गिरनारे, हेलक तेह मुणींदना रे॥जि॥२॥बावीश वरस वियोगे रहेती, पवनप्रिया सती अंजना रे ॥ जि० ॥ नल दमयंती सती सीताजी, षट मासी आक्रंदना रे ॥ जि०॥३॥ मुनिवरने मोदक पमिलानी, पठी करी घणी निंदना रे ॥ जि० ॥ श्रेणिक देखे पानस निशिए, मम्मण शे विडंबना रे ॥ ज० ॥४॥ एम संसार विडंबन देखी, चाहुं चरण जिनचंदना रे ॥ जि ॥ चकवी चाहे चित्त तिमिरारि, जोगी ब्रमर अरविंदना रे॥ जि० ॥५॥ जिनमति धनसिरिदो साहेली, दीपक पूज अखंमना रे ॥ जि० ॥ शिव पामी तेम नवि पद पूजो, श्रीशुजवीर जिणंदना रे ॥ जि० ॥ ६ ॥ ॥काव्यं ॥जवति दीप० ॥१॥शुचिमनात्म॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org