SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. कूपनी बाया कूप समावे, श्छा तेम सवि लांजी ॥ जूट्यो ॥२॥ नैगम एक नारी धूती पण, घेवर नूख न जागी॥ जमी जमा पाठो वलीयो, ज्ञानदिशा तव जागी ॥ चूल्यो॥३॥ कबही कष्टे धनपति थावे, अंतराय फल पावे ॥ रोगी परवश अन्न अरुचि, उत्तम धान न नावे॥चूल्योग॥४॥दायिकनावे नोगनी लब्धे, पूजा धूप विशाला ॥वीर कहे लव सातमे सिझा, विनयंधर नूपाला॥ नूल्यो॥५॥ ॥ काव्यं ॥ अगरमुख्य० ॥१॥ निजगुणादयः॥२॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ ही श्री परम ॥ नोगांतरायदहनाय धूपं य० ॥ वाण ॥ इति नोगांतरायदहनाथ चतुर्थ धूपपूजा समाप्ता ॥४॥६० ॥ ॥ अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ ॥ उपनोग विघन पतंगीयो, पमत जगत् जीउ ज्योत ॥ त्रिशलानंदन ागले, दीपकनो उद्योत ॥१॥ जोगवी वस्तु जोगवे, ते कहीए उपनोग ॥ नूषण चीवर ववना, गेहादिक संयोग ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy