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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. १६१
॥अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ ही श्री परम ॥ लानांतरायोछेदनाय पुष्पाणि य० ॥ स्वा० ॥ इति लानांतरायोछेदनार्थ तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥३॥५ए ॥ ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंनः ॥
॥ दोहा॥ ॥ कर्म कठिन कठ दाहवा, ध्यान हुताशन योग ॥ धूपे जिन पूजी दहो, अंतराय जे जोग ॥१॥ एक वार जे नोगमां, आवे वस्तु अनेक ॥ श्रशन पान विलेपने, नोग कहे जिन बेक ॥२॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग श्राशावरी ॥ डेमो
__ नांजी ॥ ए देशी॥ ॥बाजी बाजी बाजी जूट्यो बाजी, जोग विघनघन गाजी॥नूस्यो॥यागम ज्योत न ताजी ॥जूल्यो॥ कर्म कुटिल वश काजी ॥जूदयो ॥ साहिब सुण थक्ष राजी ॥ नूल्यो॥ए आंकणी ॥ काल अनादि चेतन रजले, एके वात न साजी ॥ मयणा नईणी न रहे बानी, मलीयां मात पिताजी ॥ नूल्यो० ॥१॥ अंतराय थानक सेवनथी, निर्धन गति उपराजी ॥
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