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१६६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥ ढाल सातमी ॥ राग काफी ॥ ॥ अखियनमें गुलजारा ॥ ए देशी ॥ ॥अखियनमें अविकारा, जिणंदातेरी अखियनमें अविकारा ॥ राग दोष परमाणु निपाया, संसारी सविकारा ॥जि०॥ शांतरुचि परमाणु निपाया, तुज मुखा मनोहारा ॥ जि० ॥१॥ अव्य गुण परजाय ने मुखा, चउगुण चैत्य उदारा ॥ जि०॥पंच विघन घन पडल पलाया, दीपत किरण हजारा ॥ जि० ॥२॥ कर्म विनाशी सिहखरूपी, गतीस गुण उपचारा ॥ जि० ॥वरणादिक वीश पूर पलाया, आगिई पंच निवारा ॥ जि ॥३॥ तीन वेदका उद कराया, संगरहित संसारा ॥ जि०॥ अशरीरी जवबीज दहायो, अंग कहे आचारा ॥ जि० ॥४॥ अरूपी पण रूपारोपणसें, उवणा अणुयोग द्वारा ॥ जि०॥ विषम काल जिनबिंब जिनागम, नवियणकुंआधारा ॥ जि० ॥५॥ मेवा मीगर थाल जरीने, षट्रस नोजन सारा ॥ जि० ॥ मंगल तूर बजावत आवो, नर नारी कर थारा ॥ जि० ॥६॥ नैवेद्य ठवी जिन आगे मागो, हलि नृप सुर अवतारा। जि० ॥ टाली अनादि आहारविकारा, सातमे लव अणादारा ॥
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