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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. १४७ मान लहे मघवा वली, बाहुबली जरतेश ॥ जि० ॥ तुंग॥ ६॥ धर्मरयणनी योग्यता, उंच गोत्र कहाय ॥ जि ॥ श्रीशुजवीर जिनेश्वरु, सिकारथ कुल जाय ॥जि०॥ तुं० ॥७॥ ॥ काव्यं ॥ जिनपते ॥ १॥सहजकर्म ॥२॥
॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ दी श्री परम ॥ उच्चैर्गोत्रातीताय चंदनं य० ॥ स्वा० ॥ इति उच्चैर्गोत्रातीतार्थं द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥५॥५०॥ ॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ ॥जिनवर फूले पूजतां, उंच गोत्र बंधाय ॥ उत्तम कुलमा अवतरी, कर्मर हित ते थाय ॥१॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ सुण गोवालणी
गोरसमां ॥ ए देशी ॥ ॥ सुण दयानिधि, उत्तम कुल अवतरतां पार न श्राव्यो ॥ सद्गुरु मले, तुज आगम अजवाले मुज समजाव्यो॥ ए आंकणी ॥ समकित संजुत व्रत
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