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१४६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथ द्वितीय चंदनपूजा प्रारंजः॥
॥ दोहा ॥ ॥ ज्ञानादिक गुण नवि हणे, बंध उदयमें कोय ॥ तिणे अघाती ते कही, गोत्रनी पयमि दोय ॥१॥ ॥ ढाल बीजी ॥प्रतिमा लोपे पापीया, योगवहन
उपधान जिनजी ॥ ए देशी ॥ ॥जिनतनु चंदन पूजतां, उत्तम कुल अवतार ॥ जिनजी ॥ गोत्र वडे प्राणी वडो, मान लहे संसार॥ जिनजी ॥ तुं सुखीयो संसारमां ॥१॥ उत्तम कुलना उपन्या, सूत्र कह्या अणगार ॥
जिवाचक सूरिपदवी लहे, उंच गोत्र अवतार ॥ जि० ॥ तुंग ॥॥ उग्र जोग वली राजवी, हरिवंशे जिनदेव ॥ जि० ॥ वासवकल्पे आवतां, चक्री हरिबल देव ॥ जि ॥ तुं० ॥ ३ ॥ नीच गोत्र थावर समा, मणि हीरो ऊलकंत ॥ जि० ॥ गंगा दीरसमुज्नां, यमनाजल वदंत ॥ जि०॥ तुं॥४॥ कल्पतर सहकारनां, केतकी पत्र ने फूल॥जि०॥मंगल कारण शिर धरे, मंद पवन अनुकूल ॥ जि० ॥ तुं० ॥ ५ ॥ एम संसारे प्राणीया, उत्तम गोत्र विशेष ॥ जि०॥
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