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१४० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
आचरतां, जिनपूजा फूलपगर जरतां ॥ श्रावक मुनि दशमुं गुण धरता, उंच गोत्र तणो बंधज करतां ॥ सु॥१॥ तुमे सत्ता उदये अनुनवीयो, शैलेशीकरण करी खवीयो।ते रस चखवी मुज हेलवीयो, एक खामी जे नवि नेलवीयो ॥ सु० ॥२॥ एके समये एक बंधाये, तेणे ए अध्रुवबंधी थाये ॥ सत्तोदय अध्रुव कहेवाये, सुखीया थए जब ए जाये ॥ सु ॥३॥ लघु बंधे श्रम मुहरत करीयो, उंच गोत्रे गुरु विश् श्राचरीयो ॥ दश कोमाकोमी सागरीयो, दशसें वरसे जोगवी फरीयो ॥ सु॥४॥ हवे में तुज आणा शिर धरीयो, थ अंत कोमाकोमी सागरीयो ॥ मोटो दरियो पण में तरीयो, शुजवीर प्रज्जु सेवन फलीयो ॥ सु० ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ सुमनसांग ॥१॥ समयसार॥॥
॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ही श्री परम ॥ उच्चैर्गोत्रस्थितिविवेदनाय पुष्पाणि य० ॥ स्वा० ॥ इति उच्चैर्गोत्रस्थितिविछेदनार्थं तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥३॥५१॥
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