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________________ 298 विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ अथ ॥ सप्तमदिवसेऽध्यापनीयगोत्रकर्मसूदनार्थं सप्तमपूजाष्टक प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम जलपूजा प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ गोत्रकरम हवे सातमुं, व्याप्युं इणे संसार ॥ गोत्रकरम बेद्या विना, नवि पामे जवपार ॥ १ ॥ चक्रम संयोगथी, घमतो घट कुंनार ॥ घी जरीयो घट एकमे, बीजे मदिरा बार ॥ २ ॥ उंच नीच गोत्रे करी, जरीयो या संसार ॥ कर्मदहन करवा जणी, पूजा अष्ट प्रकार ॥ ३ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग अलैयो ॥ बिलावल ॥ में कीनो नहीं, प्रभु विना रशुं राग ॥ ए देशी ॥ ॥ केशरवासित कनक कलशशुं, जलपूजा यमिषेक ॥ सम तिरंगे सद्गुरु संगे, धरतो विनय विवेक ॥ को सही, या रीत गोतको बंध ॥ या रीत गोतको बंध ॥ में की० ॥ या० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ बहुश्रुत For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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